Purane Jamane Ki Kahaniyan: अभी के समय में बच्चे कई ऐसे पुरानी कहानियाँ सुनना चाहते है. क्युकी पुरानीं हिंदी कहानी में जो रस, शिक्षा और मजा है वह अभी के कहानी में नहीं मिलता.
पुराने ज़माने में घर के बड़ें बुजुर्ग अपने पोते-पोतियों को बहुत सारे कहानियाँ (Hindi Moral Stories) सुनाते थे. जिसे सुनकर बच्चे बहुत ही खुश हो जाते थे. आज के इस पोस्ट में हम आपके लिए लेकर आए है ऐसे ही भारत में 10 लोकप्रिय हिंदी कहानियाँ जिसे सुनने के बाद आपको बहुत शिक्षा मिल सकता है.
जिसे आप अपने बच्चो को सुना सकते है. इसके साथ ही जब आप यह सभी कहानियां पढ़ेंगे तो आपको अपना बचपन भी याद आ जाएगा.
हमने निचे Purane Jamane Ki Kahani दी है जो बच्चो को काफी पसंद आएगी. तो आइए पढ़ते है-.
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1# जादुई तालाब की कहानी – Purane Jamane Ki Kahaniyan
एक बार की बात है, एक गाँव में दो सोतोले बहनें रहती थीं सीता और गीता. सबसे बड़ी बहन सीता थी और छोटी बहन गीता थी। दोनों का आपस में मेल जोल इतना अच्छा नहीं था। गीता अपने बड़ी बहन के साथ कभी सोतेला वेबहर नहीं किया बल्कि वह अपनी बड़ी बहन का बहुत ही आदर और सम्मान करती हैं।
लेकिन सीता सोचती थी कि उनकी छोटी बहन को उनसे जलन हो रही है और सीता इस गलत फेमि में गीता से नफरत करने लगीं और मौका मिलते ही उससे जगडा करने लगती थी. लेकिन गीता फिर भी सीता से कुछ नहीं कहती, एक दिन जब गीता सीमा से बाहर हो गई, तो गीता ने कहा “देखो सीता, तुम एक मात्र मेरी बड़ी बहन हो, तुम इस तरह का व्यहार मत करो, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ” तब सीता ने कहा “कौन सा बहन तुम मेरे सोतेली बहन हो, ये सब तुमारा नाटक हैं।
यह सुनकर गीता को बहुत तकलीफ हुई और वह उदास होकर बाहर चली गई और सीता के बारे में सोचते हुए जंगल की ओर चली गई। अचानक कोई गीता को पुकारने लगा, उसे लगा कि शायद सीता मुझे बुला रही है। उसकी न सुनकर वह आगे बढ़ गई, उसके सामने एक बड़ा सा पेड़ दिखाई दिया तो वह उस पेड़ के सामने बैठ कर रोने लगी। तभी अचानक पेड़ ने कहा “मैं थोड़ी परेशानी में हूँ, क्या आप मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं”.
गीता ने कहा, “हां, मैं आपकी मदद जरूर करूंगी।” पेड़ ने कहा, “बेटी में बूढ़ा हो गया हूं, मेरी जड़ें भी कमजोर हो गई हैं, इसलिए मैं जमीन से पानी नहीं खींच पा रहा हूं, क्या आप पास के तालाब से कुछ पानी ला कर मेरे ऊपर डाल दोगे” गीता ने कहा “जरुर मैं अभी जाती हु” गीता वहा से निकल कर तालाब के पास पानी लेने जाती है और देखती है कि वहाँ पहले से ही एक मटका रखा था।
गीता उस घड़े में पानी लाती है और उसे पेड़ की जड़ों में डाल देती है, तो पेड़ ने कहा, “बहुत बहुत धन्यवाद बेटी, तुम बहुत अच्छी लड़की हो और तुम्हारा दिल बहुत शाफ हैं. गीता ने कहा “इसमें शुक्रिया कैसा, हमे जरूरतमंद लोगोकी मदद करनी चाहिए” पेड़ ने कहा बेटी तुम जिस तालाब से पानी ले कर आइ हो, मैं चाहता हूं कि तुम एक बार फिर से उस तालाब में जाओ और एक ढूपकी लगा कर आओ और अगर तालाब तुम्हें कोई उपहार देता है तो उसे स्वीकार कर लेना”
गीता एक बार फिर से उस तालाब की ओर जाती हैं, तालाब पहुँच कर पानी में उतर जाती हैं और एक ढुपकी लगाती हैं. ढुपकी लगाते ही गीता के हात में एक सोने से भरा मटका आ जाता हैं. गीता सोचने लगी “लगता हैं इसी उपहार के बारे में बात कर रहे थे, पेड़ जी मुझे ये स्वीकार कर लेनी चाहिए”
इतना कहकर गीता सोने से भरे उस घड़े को लेकर अपने घर की ओर जाने लगी। घर पहुंचकर गीता अपने माता-पिता को सोने से भरा घड़ा देती है और सारी बातें बताती है, यह देखकर सीता को जलन होने लगती है। माता-पिता के जाने के बाद सीता गीता के पास आती हैं और कहती हैं, “तुम्हें सोने से भरा वह घड़ा कहाँ से मिला” गीता ने कहा, “मैं इसे जंगल के पास के तालाब से लाई हूँ, लेकिन तुम मुझसे इतने सवाल क्यों पूछ रही हो”।
सीता ने कहा “तुम अपने हिस्से का सोना लेकर समझते हो मैं अपना हिस्सा छोड़ दू, मैं अपनी हिस्से लेने वहा जाऊंगी” गीता ने कहा, “मैं जो सोना लाइ हूं वह तुम्हारा भी है और हमें सोना नहीं चाहिए” तब सीता ने कहा “तुम अपना राइ अपने पास रखो, मैं जाऊंगी” दूसरे दिन सीता तालाब की तलाश में निकल जाती है और जादुई तालाब के पास जाने लगती है।
रास्ते में सीता को भी वह पेड़ आवाज देता हैं और पेड़ कहता हैं “बेटी ओ बेटी क्या तुम थोड़ी देर रुक सकती हो” सीता ने कहा “वाह बोलने वाला पेड़, ये तो कुछ नया लगता हैं, हां बोलो क्यों आवाज दे रहे हो” पेड़ ने वही सवाल सीता से भी पूछा और सीता ने कहा “शुबे-शुबे तुम्हे और कोई नहीं मिला अपनी बकवास बाते बोलने के लिए मैं एक जरूरी काम से जा रही हु, मुझे परेशान मत करो।
पेड़ ने कहा “बेटी बस थोड़ा सा पानी ला दो” सीता गुस्सा हो गई और कहा “तु एसे नहीं मानोगा, रुक मैं तुझे अभी पानी पिलाता हु” यह बोल कर सीता पेड़ को परेशान करने लगी और वहा से चली गई. थोड़ी देर में वह तालाब के पास पहुँच जाती हैं.
फिर सीता कहने लगी “हां एही वह तालाब हैं, जल्दी से उतर कर मैं एक ढुपकी लगाती हु” सीता तालाब में उतर कर एक ढुपकी लागाती हैं. ढुपकी लगाते ही सीता के पैर में एक सांप काट लेता हैं और वह चीखने लगती है. इधर सीता को न आता देख गीता बहुत परेशान हो रही थी.
गीता सोच रही थी “इतनी देर हो गई अभी तक सीता वापास नहीं आई, कही सीता किसी संकट में तो नहीं पढ़ गई” और गीता उसे ढूंढे निकल पड़ी , गीता जा कर पेड़ से बोली “पेड़ जी क्या आप सीता को कही देखे हो. पेड़ ने कहा “हां सीता उस तालाब की ओर गई हैं”।
पेड़ की बात सुन कर गीता तालाब की जाने लगी और वहा जा कर देखती हैं उसकी बड़ी बहन तालाब के पास[पढ़ी हैं वह सीता को बहुत उठाने की कोशिस करती है. लेकिन सीता नहीं उठी तब गीता वापस पेड़ की पास जाती हैं और उसे सारी बात बताती है.
तब पेड़ ने कहा “तुम्हारे बहन को सांप ने काटा है, उसे बचाने का एकही उपाई हैं, मुझसे एक शाखा तोड़ लो और तुम्हारे बहन को जा कर छुओ वह ठीक हो जाएगी” गीता उस शाखा को लेकर सीता को छूआया और सीता ठीक हो गई।
इसके बाद सीता ने छोटी बहन से कहा, “तुम न आती तो मैं आज जीवित न होती।” गीता ने कहा, “नहीं, मैंने पहले ही तुमसे कहा था कि हमें और धन नहीं चाहिए, लेकिन तुमने मेरी बात नहीं मानी और हट करके चले गई।” सीता ने कहा, “क्षमा करो गीता, आज के बाद मैं तुम्हारी हर बात मानूंगी।” यह कहकर सीता और गीता पेड़ के पास गई और पेड़ को धन्यवाद दिया और अपने घर वापस चली गई।
Purane Jamane Ki Kahaniyan, इस कहानी से सीख: Jaadui Talab की कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमारे पास जो है उसमें खुश रहना चाहिए। क्योंकि लालच के कारण आपकी जान भी जा सकती है, इसलिए बच्चो, यदि आपका कोई छोटा या बड़ा भाई-बहन है तो उसकी बात माननी चाहिए। क्योंकि वे कभी आपका बुरा नहीं चाहेंगे। इसलिए हमेशा बड़े या छोटे की बात माननी चाहिए.
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2# शेर और बंदर की कहानी – Kahaniyan Bandar Wali
एक ज़माने में। जंगल के राजा, शेर और बंदर के बीच विवाद हो गया। वाद-विवाद का विषय था – ‘बुद्धि श्रेष्ठ है या बल’ शेर की दृष्टि में बल श्रेष्ठ था, परन्तु वानर की दृष्टि में बुद्धि। दोनों के अपने-अपने तर्क थे। अपनी दलीलें देकर वे एक-दूसरे के सामने खुद को सही साबित करने लगे।
बंदर बोला, “शेर महाराज, बुद्धि ही श्रेष्ठ है। बुद्धि से संसार का प्रत्येक कार्य सम्भव है, चाहे वह कितना ही कठिन क्यों न हो? बुद्धि से प्रत्येक समस्या का समाधान संभव है, चाहे वह कितनी ही कठिन क्यों न हो? मैं बुद्धिमान है और अपनी बुद्धि का उपयोग करके आसानी से किसी भी परेशानी से बाहर निकल सकता है। कृपया इसे स्वीकार करें।”
बंदर की दलील सुनकर शेर को गुस्सा आ गया और उसने कहा, “बंदर चुप रहो, बल और बुद्धि की तुलना करके तुम बुद्धि को श्रेष्ठ बता रहे हो।” ताकत के आगे किसी की ताकत काम नहीं आती। मैं बलवान हूं और मेरी शक्ति के आगे तेरी बुद्धि कुछ भी नहीं। मैं चाहूं तो इसी क्षण तुम्हारा जीवन लेने के लिए इसका उपयोग कर सकता हूं।
बंदर कुछ क्षण शांत रहा और बोला, “महाराज, अब मैं जा रहा हूं। लेकिन मेरा मानना है कि बुद्धि बल से श्रेष्ठ है। एक दिन मैं इसे आपको सिद्ध कर दूंगा। मैं अपनी बुद्धि से बल को हरा दूंगा।”
“मैं उस दिन की प्रतीक्षा करूँगा जब तुम इसे करोगे। उस दिन मैं तुम्हारी इस बात को अवश्य मान लूंगा कि बल से बुद्धि श्रेष्ठ है। लेकिन, तब तक बिल्कुल नहीं। शेर ने जवाब दिया। इस बात को बहुत दिन बीत चुके हैं। बंदर और शेर आमने-सामने भी नहीं आए।
एक दिन शेर जंगल में शिकार करके अपनी गुफा में लौट रहा था। अचानक वह पत्तों से ढके एक गड्ढे में गिर गया। उनके पैर में चोट आई है। किसी तरह वह गड्ढे से बाहर निकला तो पाया कि सामने एक शिकारी बन्दूक लिए खड़ा है। सिंह घायल हो गया। ऐसी अवस्था में वह शिकारी का सामना करने में असमर्थ था।
तभी अचानक कहीं से शिकारी पर पत्थर बरसने लगे। शिकारी हैरान रह गया। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, एक पत्थर उसके सिर पर जा गिरा। वह दर्द से कांप उठा और जान बचाकर वहां से भागा।
शेर भी हैरान था कि किसने शिकारी पर पत्थरों से हमला किया और किसने उसकी जान बचाई। इधर-उधर देखते हुए वह सोच ही रहा था कि सामने पेड़ पर बैठे बंदर की आवाज सुनाई दी, “महाराज, आज आपके बल को क्या हो गया? इतने मजबूत होते हुए भी आज आपका जीवन दांव पर लगा था। बंदर को देखकर शेर ने पूछा, “तुम यहाँ कैसे हो?”
“महाराज, कई दिनों से मेरी नजर उस शिकारी पर थी। एक दिन मैंने उसे गड्ढा खोदते हुए देखा तो मैं समझ गया कि वह तुम्हारा शिकार करना चाह रहा है। इसलिए मैंने इस पेड़ पर थोड़ी-सी बुद्धि और ढेर सारे पत्थर जमा किए, ताकि जरूरत पड़ने पर मैं इनका इस्तेमाल शिकारी के खिलाफ कर सकूं।
बंदर ने बचाई थी शेर की जान वह उसका आभारी था। उसने उसे धन्यवाद दिया। उसे अपने और बंदर के बीच के विवाद की भी याद आ गई। उसने कहा, “बंदर भाई, आज तुमने सिद्ध कर दिया कि बुद्धि बल से श्रेष्ठ है। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। मैं समझ गया हूँ कि शक्ति हर समय और सभी परिस्थितियों में एक जैसी नहीं रहती, बल्कि बुद्धि हर समय और हर परिस्थिति में हमारे साथ रहती है।
बंदर ने उत्तर दिया, “महाराज, मुझे खुशी है कि आप इसे समझते हैं। आज की घटना पर ध्यान दें। शिकारी की ताक़त तुमसे कम थी, लेकिन इसके बावजूद उसने अपनी बुद्धि से तुम पर क़ाबू पा लिया। वैसे ही मेरा बल शिकारी से कम था, पर बुद्धि से मैंने उसे डराकर भगा दिया। इसलिए सभी कहते हैं कि बल से बुद्धि कहीं श्रेष्ठ है।
इस कहानी से सीख: बुद्धि का प्रयोग कर हर समस्या का निराकरण किया जा सकता है. इसलिए बुद्धि को कभी कमतर न समझें.
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3# तेनाली की मोटी बिल्ली – Tenali Ki Moti Billi Kahani
एक बार राजा कृष्ण देव राय की पत्नी यानी रानी को बिल्लियां पालने का शौक हो गया। रानी की बिल्लियों के प्रति दीवानगी इस कदर बढ़ गई कि उन्होंने अपने सभी सभासद मंत्रियों, द्वारपालों और तेनाली रामा को एक-एक बिल्ली और एक गाय दे दी।
गाय इसलिए दी जाती थी ताकि बिल्ली गाय से ताजा दूध प्राप्त कर सके। सभी अपनी-अपनी गायों और बिल्लियों को लेकर घर चले गए। ठीक एक महीने बाद, रानी ने सभी को अपनी बिल्लियों के साथ महल में आने का आदेश दिया, यह देखने के लिए कि किसने बिल्ली की सबसे अच्छी देखभाल की।
रानी ने देखा कि तेनाली रामा की बिल्ली सबसे मोटी और सबसे पुष्ट दिख रही है। रानी ने खुश होकर तेनाली को 100 सोने के सिक्के भेंट किए। जब तेनाली अपने घर पहुंचा तो उसने सारी बात अपनी पत्नी को बता दी। तेनाली की बात सुनकर उसकी पत्नी ने कहा- हमारी बिल्ली तो रानी की दी हुई गाय का दूध तक नहीं पीती, तो मोटी कैसे हो गई?
तेनाली- एक दिन मैंने बिल्ली को उबला दूध पिलाया था। जिससे उसका मुंह जल गया तब से उसने दूध पीना छोड़ दिया और घर के चूहों को पकड़कर खाना शुरू कर दिया और हमारे बच्चों को गाय का दूध मिला जिससे हमारे घर के चूहे भी खत्म हो गए। बिल्ली भी मोटी हो गई और बच्चे भी पुष्ट हो गए।
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4# दूधवाली और उसके सपने की कहानी – Dudhwaali Aur Uske Sapne Ki Kahani
दूधवाली और उसके सपने एक बहुत ही अनोखी कहानी है जिसमें की बच्चों को दिवास्वप्न न देखने की सीख मिलती है। एक समय की बात है, एक गाँव में कमला नाम की एक ग्वालिन रहती थी। वह अपनी गायों का दूध बेचकर पैसा कमाती थी ताकि वह जीवित रह सके।
एक दिन की बात है, उसने अपनी गाय को दूध पिलाया और एक छड़ी पर लाए हुए दूध की दो बाल्टी लेकर बाजार में दूध बेचने निकल पड़ी। जैसे ही वह बाजार जा रही थी, वह दिवास्वप्न देखने लगी कि दूध के लिए उसे जो पैसा मिला है, उसका वह क्या करेगी।
उसने मन ही मन कई चीजें सोचने लगी। उसने मुर्गी खरीदने और उसके अंडे बेचने की सोची। फिर उस पैसे से वो एक केक, स्ट्रॉबेरी की एक टोकरी, एक फैंसी ड्रेस और यहां तक कि एक नया घर खरीदने का सपना देखने लगी। इस प्रकार से वो कम समय से अमीर बनने की योजना बनाई।
अपने उत्साह में, वह अपने साथ ले जा रहे दोनों बाल्टी के बारे में भूल गई और उन्हें छोड़ना शुरू कर दिया। अचानक, उसने महसूस किया कि दूध नीचे गिर रहा है, और जब उसने अपनी बाल्टी की जाँच की, तो वे खाली थे। ये देखकर वो रोने लगी और उसे उसके भूल का पछतावा होने लगा।
इस कहानी से सीख: इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है की केवल सफलता ही नहीं, सफलता प्राप्त करने की प्रक्रिया पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
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5# लकड़हारा और कुल्हाड़ी की कहानी – Lakadhara Aur Kuladi Ki Kahani
एक गांव में एक लकड़हारा रहता था, जो जंगल से लकड़ी काटकर बाजार में बेचकर पैसे कमाता था। एक दिन वह रोज की तरह जंगल में लकड़ी काटने गया और नदी के किनारे एक पेड़ से लकड़ी काटने लगा।
अचानक कुल्हाड़ी उसके हाथ से छूटकर नदी में जा गिरी। इससे लकड़हारा बहुत दुखी हुआ और वह नदी में कुल्हाड़ी खोजने की कोशिश करने लगा। लेकिन उसे अपनी कुल्हाड़ी नदी में नहीं मिली। इस बात से लकड़हारा बहुत दुखी हुआ और वह नदी के किनारे बैठकर रोने लगा। जब वह नदी तट पर रो रहा था, तब लकड़हारे की आवाज सुनकर भगवान नदी से प्रकट हुए।
भगवान ने लकड़हारे से पूछा कि तुम क्यों रो रहे हो, इस पर लकड़हारे ने आदि से अंत तक की सारी कहानी भगवान को बता दी। लकड़हारे की कहानी सुनकर प्रभु को उस पर दया आ गई और लकड़हारे की मेहनत देखकर उन्होंने उसकी मदद करने की योजना बनाई। इसके बाद भगवान जी नदी में अंतर्ध्यान हो गए और लकड़हारे को सोने की कुल्हाड़ी देते हुए कहा, यह रही तेरी कुल्हाड़ी।
सुनहरी कुल्हाड़ी देखकर लकड़हारे ने कहा, हे भगवान, यह कुल्हाड़ी मेरी नहीं है, यह सुनकर भगवान फिर से नदी में गायब हो गए और इस बार चांदी की कुल्हाड़ी लकड़हारे को देते हुए कहा, “ये लोग तुम्हारी कुल्हाड़ी हैं, इस बार लकड़हारा भी।” उसने कहा कि यह कुल्हाड़ी भी मेरी नहीं है और मुझे केवल अपनी कुल्हाड़ी चाहिए। भगवान फिर नदी में अंतर्ध्यान हो गए, एक लोहे की कुल्हाड़ी निकाली और लकड़हारे को देते हुए कहा, यह रही तेरी कुल्हाड़ी।
इस बार लकड़हारे के चेहरे पर मुस्कान थी, क्योंकि यह कुल्हाड़ी लकड़हारे की थी। उसने कहा यह मेरी कुल्हाड़ी है। भगवान ने लकड़हारे की ईमानदारी से प्रसन्न होकर सोने और चांदी की दोनों कुल्हाड़ियां उसी लकड़हारे को दे दीं। इससे लकड़हारा खुशी-खुशी अपने घर चला गया।
कहानी से सीख: लकड़हारे की इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है, हमें हमेशा अपनी ईमानदारी पर ही रहना चाहिए। क्योकिं जीवन में ईंमानदार व्यक्ति को कोई भी नहीं हरा सकता है।
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6# चोर की दाढ़ी में तिनका अकबर बीरबल की कहानी – Chor Ki Dhadi Me Tinka Akbar Birbal Ki Kahaniyan
एक ज़माने में। बादशाह अकबर की हीरे की अंगूठी गायब हो गई। उन्होंने उसकी काफी तलाश की, लेकिन वह नहीं मिली। जब उन्होंने बीरबल से यह बात कही तो बीरबल ने पूछा, “हुजूर! क्या आपको याद है कि आपने वह अँगूठी कहाँ उतारी थी?”
कुछ देर सोचने के बाद अकबर ने जवाब दिया, “नहाने से पहले मैंने वह अंगूठी उतार कर पलंग के पास रखी संदूक में रख दी। नहाने के बाद देखा तो अंगूठी गायब थी।
“हुजूर! फिर हमें इस पूरे कमरे की अच्छी तरह से तलाशी लेनी चाहिए, जिसमें संदूक भी शामिल है। अंगूठी यहीं कहीं होगी। बीरबल बोला।
“लेकिन वह यहाँ नहीं है। मैंने नौकरों से कमरे के कोने-कोने की तलाशी लेने को कहा, एक संदूक की तो बात ही छोड़िए। लेकिन अंगूठी कहीं नहीं मिली। अकबर ने कहा।
“तो आपकी अँगूठी खोई नहीं है हुजूर, चोरी हो गई है और चोर आपके नौकरों में से एक है। आप उन नौकरों को बुलाइए जो इस कमरे की सफाई करते हैं। अकबर ने सभी सफाई कर्मचारियों को बुलाया। वे कुल 6 लोग थे।
जब बीरबल ने उनसे अंगूठी के बारे में पूछा तो सभी ने अनभिज्ञता जाहिर की। तब बीरबल ने कहा, “ऐसा लगता है कि अंगूठी चोरी हो गई है। बादशाह सलामत ने अंगूठी को संदूक में रखा था। इसलिए अब संदूक ही बताएगा कि चोर कौन है?”
यह कहकर बीरबल संदूक के पास गए और कान से कुछ सुनने की कोशिश करने लगे। तब उसने सेवकों को सम्बोधित करते हुए कहा, “संदूक ने मुझे सब कुछ बता दिया। अब चोर का बचना नामुमकिन है। जो चोर है उसकी दाढ़ी में तिनका है।
सुनने में आया था कि 6 नौकरों में से एक ने नज़रें बचाते हुए अपनी दाढ़ी पर हाथ फेर लिया। ऐसा करते हुए बीरबल की आंखों ने उन्हें देख लिया। उन्होंने तुरंत उस नौकर को गिरफ्तार करने का आदेश दिया।
सख्ती से पूछने पर उस नौकर ने सच-सच बताकर अपनी गलती स्वीकार कर ली। बीरबल की सूझबूझ से राजा को उनकी अंगूठी वापस मिल गई।
नैतिक शिक्षा: घबराहट के कारण दोषी व्यक्ति अपने हाव-भाव से अपनी गलती जाहिर कर देता है और अंतत: पकड़ा जाता है। सदाचार का सादा जीवन ही श्रेष्ठ है, किसी भी प्रकार के लोभ में आकर गलत कार्यों में न पड़ें।
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7# आलसी गधा की कहानी – Aalsi Gadha Ki Kahaniyan
एक व्यापारी के पास एक गधा था। वह गधे पर बाजार से माल ढोकर लाता था। एक दिन व्यापारी ने नमक के बड़े-बड़े बोरे गधे की पीठ पर लादे। इतने भारी बोझ से गधे का दम निकला जा रहा था।
अचानक रास्ते में नदी के किनारे उसका पैर फिसला और वह नदी में जा गिरा। किसी तरह संभलकर वह उठा तो हैरान था, क्योंकि उसकी पीठ पर लदा भार अचानक हल्का हो गया था। दरअसल, नमक पानी में घुल गया था। अगले दिन फिर व्यापारी ने गधे की पीठ पर नमक के भारी बोरे लादे। गधा जब नदी पर पहुँचा तो जान-बूझकर फिसलकर पानी में जा गिरा।
उसकी पीठ का भार फिर कम हो गया। गधे के मालिक ने देख लिया था कि आज गधा जान बूझकर फिसला है, इसलिए उसने गधे को सबक सिखाने की सोची। अगले दिन उसने गधे की पीठ पर रूई के बोरे लादे। नदी पर आकर गधा जैसे ही फिसलकर नदी में गया तो रूई ने पानी सोख लिया और भारी हो गई। गधे को अब अपने ऊपर पछतावा हो रहा था।
नैतिक शिक्षा: हमें परिश्रम से
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8# सूरज और हवा की कहानी – Suraj Aur Hawa Ki Kahani
एक बार की बात है वह पतझड़ का दिन था, एक दिन हवा और सूरज एक बात को लेकर बहस कर रही थी। हवा ने दावा किया मैं तुमसे ज्यादा ताकतवर हूं। सूरज उसकी बात नहीं मानी उसने कहा नहीं तुम ज्यादा ताकतवर नहीं हो।
तभी, उन्होंने देखा एक यात्री कंबल में लिपटा हुआ वहां से गुजर रहा था। हवा ने कहा, हम दोनों में से जो भी कंबल को यात्री से अलग कर पाएगा वह ज्यादा शक्तिशाली है। सूरत से पूछा क्या आप सहमत है?
सूरज ने जवाब दिया, ठीक है पहले आप कोशिश करो। हवा जोर से बहने लगी, यात्री ने अपने कंबल को उसकी चारों ओर लपेट दिया। फिर हवा और जोर से बहने लगी, यात्री ने अपनी कंबल ओढ़ लिया। हवा बहुत जोर जोर से बह रही थी लेकिन यात्री ने अपनी कंबल नहीं छोड़ी, वह कंबल में लिपटा रहा, हवा विफल रही। अब सूरज की बारी थी, सूरज यात्री पर धीरे से मुस्कुराया।
यात्री ने कंबल पर अपनी पकड़ ढीली कर दी, सूरज और गर्म होकर मुस्कुराया। यात्री ने बहुत ही ज्यादा गर्व महसूस की और जल्द ही कंबल उतार दिया, फिर सूरज को हवा से ज्यादा ताकतवर घोषित किया गया।
नैतिक शिक्षा: जहां नम्रता से बात मनवाई जा सकती है, वहां ताकत दिखाने का कोई जरूरत नहीं है।
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9# मोटी परी – Moti Pari Ki Hindi Kahaniyan
कानपुर नाम का एक गाँव था, जहाँ परियाँ रहती थीं। उन परियों में शांति नाम की एक परी भी थी, वह बहुत सुंदर थी लेकिन मोटी थी। इस वजह से सभी परियां उसका मजाक उड़ाती थीं। वह कॉलेज में भी अकेली बैठती थी।
एक दिन सभी परियां कॉलेज के बाद जंगल में घूमने निकल जाती हैं। तो शांति भी जंगल में उनका पीछा करती है। सभी परियां पेड़ के नीचे बैठकर बातें कर रही हैं। फिर वहां भी शांति आती है। सभी परियां उसका मजाक उड़ाती हैं और कहती हैं कि “इसके मोटापे के कारण कोई पेड़ नहीं गिरना चाहिए।”
तभी वहां बने कुएं में एक लड़का पानी लेने आता है, उसका नाम संजय है। सभी परियां उसे देखकर मोहित हो जाती हैं, शांति भी उस लड़के को बहुत पसंद करती है। सारी परियां शांति से बोलती हैं, तुम्हें उस लड़के को देखने का हक नहीं है। सिर्फ हमें इतना सुंदर और आकर्षक लड़का देखने का अधिकार है।
तुम जाओ और तुम जैसे मोटे लड़के को देखो। यह सुनकर शांति वहां से रोती हुई घर आती है। और शीशे के सामने खड़े रोते रोते कहती हैं “मोटे लोगों को क्या मोहब्बत करने का हक़ नहीं होता है। इसमें मेरा क्या दोष है कि मैं मोटी हूँ?
शांति रोज कॉलेज के बाद संजय को देखने जंगल में जाती थी। बहुत दिनों के बाद उसने एक दिन फैसला किया कि आज वह संजय को यह कहकर रुकेगी कि वह उससे प्यार करती है। जब संजय पानी लेने आया तो शांति उसके पास गई और उससे कहा। मे तुम्हे बहुत पसद करती हु। मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ।
तो संजय उससे कहता है कि तुम अपने आप को देखो और मुझे देखो, हमारे कोई मेल नहीं। तुम बहुत मोटी हो और मैं इतना सुंदर लड़का हूँ। यह कहकर वह चला जाता है। अब शांति को लगता है, उसे अपनी जान दे देनी चाहिए।
जैसे ही वह कुएं में कूदने के लिए जाती है, तभी एक जादूगरनी आती है और उसे रोक लेती है। शांति बोलती है – तुमने मुझे क्यों बचाया जादूगरनी जी। कोई मुझे पसंद नहीं करता क्योंकि मैं बहुत मोटी हूँ। फिर जादूगरनी उसे बिस्किट देती है और कहती है कि अब कोई तुम्हें नापसंद नहीं करेगा। इसे खाते ही आप पतले हो जाएंगे। शांति उस बिस्किट को खाती है।
और वह एक पतली परी बन जाती है। वह अपने घर जा रही है। तभी संजय उसे देखता है और उसके पास आता है। और कहता है तुम बहुत खूबसूरत हो, मुझे तुमसे प्यार हो गया है। तब शांति उससे कहती है, मैं वह मोटी लड़की हूं। जिसका आपने अभी-अभी अपमान किया है।
मुझे ऐसे लड़कों से दोस्ती करने में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं है। इसके बाद संजय उससे माफी मांगता है। तो शांति ने उसे माफ कर दिया। और घर चला जाता है।
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10# लालची कुत्ता की कहानी – Lalchi Kuttta Ki Kahani
एकबार की बात है एक छोटे से गाँव में एक कुता रहता था. वह उस गाँव का बहुत प्यारा कुत्ता था, जिस वजह से गाँव के लोग उसे हर रोज कुछ न कुछ खाने को देते रहते थे. जिससे कुत्ते का जीवन बहुत ही मजे से कट रहा था. वह रोज गाँव के लोगो के घर के बाहर चला जाता और गाँव के लोग उसे कुछ खाने के दे देते.
लेकिन एक दिन वह एक दुसरे गाँव में चला गया. जहाँ उस कुत्ते को कोई नहीं पहचानता था. जिसके कारण उसे कोई खाना नहीं देता. वह गाँव के सभी के घर के बाहर जा के घंटो खड़ा रहता लेकिन कोई भी उसे खाने को कुछ भी नहीं देता और उसे भगा देता.
जिस वजह से उसने दो दिन से कुछ भी नहीं खाया था और उसका भूक के मारे हाल बेहाल था. अब कुत्ता ठीक से चल भी नहीं पा रहा था. वह बहुत ही ज्यादा थक गया था और निराश होकर एक होटल के बाहर जा कर बैठ गया. शाम होने को आई थी, तभी कुछ दूर कुत्ते को एक रोटी का बड़ा टुकड़ा दिखाई दिया.
रोटी का टुकड़ा देखते ही कुत्ते के मुह में पानी आ गया, वह बहुत ही खुस हो गया और खुसी के मारे पूछ हिलाते हुए दौड़ कर उस रोटी के टुकड़े के पास गया. कुत्ते ने रोटी को अपने मुह में उठा लिया और आसपास देखने लगा. उसने सोचा की “में इस रोटी के टुकड़े को लेकर कही दूर चला जाऊ, नहीं तो यहाँ के लोग मुझे फीर भगा देंगे”.
उसने तुरत रोटी के टुकड़े को मुह में दबाते हुए होटल के किनारे से भागते हुए पास के जंगल में चला गया. जंगल में पहुँचने के बाद कुत्ते ने एक सुरक्षीत जगह खोजी और वहा बैठ गया. आसपास देखने के बाद वह निश्चिंत होकर रोटी के कुछ टुकड़े को बड़ा मजा लेकर खाया.
लेकिन अब उसे प्यास लग रही थी. जिसके कारन कुत्ते ने बाकि बचे रोटी को मुह में लिए पानी के खोज में चल पड़ा. कुछ ही दूर चलते ही उसे पास में नदी दिखाई दी. उसने अपनी प्यास बुझाने के लिए नदी के किनारी पहुंचा तो कुत्ते ने नदी के पानी में अपनी ही परछाई देखी.
जिसे देख कुत्ते को लगा की नदी में कोई दूसरा कुत्ता मुह में रोटी लिए है, यह देख उसके मन में लालच पैदा होने लगी. कुत्ते ने फिर सोचा की “यदि दुसरे कुत्ते के पास जो रोटी है वह भी उसे मिल जाए तो मजा आ जाएगा”. लेकिन लालची कुत्ता जैसे ही दुसरे कुत्ते से रोटी छिनने के लिए भौका तब उसका मुह खुल गया और उसके मुह में दबाया हुआ रोटी नदी में गिर कर बह गया.
अब उसके पास उसकी खुदकी भी रोटी नहीं बची. यह देख कुत्ते को बहुत ही दुःख हुआ और वह नदी के किनारे ही बहुत ही जोर जोर से भौकने लगा.
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निष्कर्ष (Conclusion of Old Hindi Stories)
बच्चो के लिए Old Stories बहुत ही मजेदार होती है. यदि आप इस Hindi Kahani को अपने बच्चो को सुनाते है तो उन्हें आगे जीवन में एक सही दिशा मिलती है.
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