पेरिस पैरालंपिक में भारत की बड़ी जीत: भारत के प्रवीण कुमार ने पेरिस पैरालंपिक 2024 में ऊंची कूद टी64 इवेंट में गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है।
हाइलाइट पॉइंट्स
- प्रवीण कुमार ने गोल्ड मेडल जीता
- पेरिस पैरालंपिक में गोल्ड जीतने का संकल्प लिया था
- एथलीट बनने का सफर चुनौतियों से भरा था
प्रवीण ने एशियाई रिकॉर्ड तोड़ते हुए यह शानदार जीत हासिल की और यह साबित किया कि सच्ची मेहनत से हर सपना पूरा हो सकता है।
संकल्प और मेहनत का फल
डेढ़ महीने पहले प्रवीण ने खुद से वादा किया था कि वह पेरिस से गोल्ड लेकर ही लौटेंगे। इस संकल्प को उन्होंने मेहनत और लगन से पूरा किया। प्रवीण ने अपने छोटे पैर के कारण जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे।
पैरालंपिक का सफर चुनौतियों से भरा
प्रवीण का पैरालंपिक तक का सफर आसान नहीं था। जन्म से ही छोटे पैर के साथ पैदा हुए प्रवीण ने शुरूआत में हीन भावना से लड़ते हुए खुद को तैयार किया। टोक्यो पैरालंपिक से पहले उन्हें कोरोना ने भी घेरा था, जिससे वह कई हफ्तों तक बिस्तर पर रहे। लेकिन ठीक होते ही उन्होंने फिर से मेहनत शुरू की और सिल्वर मेडल जीता।
चोट के बावजूद हिम्मत नहीं हारी
पेरिस पैरालंपिक से ठीक तीन महीने पहले प्रवीण को विश्व चैंपियनशिप के दौरान 'ग्रोइन' की चोट लगी थी। इस चोट के कारण वह तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन उन्होंने पेरिस पैरालंपिक का टिकट पक्का कर लिया। उनके कोच डॉ. सत्यपाल सिंह ने एमआरआई की सलाह दी और पूरी कोशिश की कि प्रवीण फिर से अपनी तैयारी शुरू कर सकें।
परिवार की खुशी
गोल्ड जीतने के बाद प्रवीण ने सबसे पहले अपने गांव गोविंदगढ़ में माता-पिता से बात की। उनके पिता अमरपाल सिंह और माता निर्दोष देवी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। प्रवीण के लिए यह पल शब्दों से परे था, क्योंकि उन्होंने अपने देश के लिए सबसे बड़ा सपना पूरा किया था।
निडर जज्बे की कहानी
प्रवीण कुमार की यह जीत सिर्फ उनके व्यक्तिगत संघर्ष और मेहनत की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है जो किसी भी चुनौती से जूझ रहा है। उनके कोच और खुद के विश्वास ने यह साबित कर दिया कि जब मेहनत और लगन साथ हों, तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती।